गोण्डा। नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में भी बहुभाषावाद को प्रासंगिक बताते हुए शिक्षाक्षेत्र के सभी स्तरों पर संस्कृत को जीवन जीने की मुख्य धारा में शामिल कर अपनाने पर बल दिया गया है। अतः संस्कृत का अध्ययन कर के छात्र-छात्राएं न केवल अपने-अपने अतीत से गौरवान्वित होकर वर्तमान में संतुलित व्यवहारशील की ओर अग्रसर होंगे। अपितु भविष्य के प्रति भी उल्लासित होंगे। उक्त विचार भाजपा जिला कार्यसमिति सदस्य घनश्याम जायसवाल ने श्री सध्दर्म विवर्धिनी संस्कृत पाठ शाला श्री जानकी घाट अयोध्या के छात्र अखिलेश उपाध्याय जी को अंग वस्त्र भेंट कर सम्मानित करते हुए कही। घनश्याम जायसवाल ने कहा कि संस्कृत भारतीय संस्कृति की प्राणस्वरूपा, भारतीय धर्म-दर्शन आदि का प्रसार करने वाली विश्व की सभी भाषाओं में प्राचीनतम तथा सर्वमान्य रूप में ग्रहण की गई है। सम्पूर्ण वैदिक-वाङ्मय, रामायण, महाभारत, पुराण, स्मृतिग्रन्थ, दर्शन, धर्मग्रन्थ, महाकाव्य, काव्य, नाटक, गद्यकाव्य, गीतिकाव्य, व्याकरण तथा ज्योतिष संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होकर इसके गौरव को बढाते हैं, जो भारतीय सभ्यता, भारतीय संस्कृति और भारतीय धरोहर की रक्षा करने में पूर्णतः सहायक है। संस्कृत से सुसंस्कृत समाज का निर्माण होता है, जैसे- वैदिक संस्कृति में गर्भ से पंचतत्व विलय पर्यन्त षोडश संस्कार का विधान है। संस्कार से शरीर और मन पवित्र होता है। पर्यावरण शुद्ध होता है। संस्कारों का वैज्ञानिक महत्त्व भी है। जिस प्रकार उदर के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। उसी प्रकार नैतिक मूल्यों से ही मानव अपनी सभ्यता का परिचय देता है। संस्कृत साहित्य में ऐसे सुभाषितों की भरमार है, जो मनुष्य की सभी समस्याओं का समाधान करते हैं। घनश्याम जायसवाल ने लोगों से अपील की अंग्रेजी भाषा के साथ-साथ अपने बच्चों को संस्कृत का ज्ञान अवश्य दिलाएं।
