बदलता स्वरूप गोंडा। सोमवार का दिन भगवान भोलेनाथ को समर्पित होता है जो भी व्यक्ति सोमवार के दिन विधि-विधान से शिवजी का पूजन और आराधना करता है, उसके जीवन के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं। इसके साथ ही जीवन में सुख एवं समृद्धि का वास हो जाता है। भगवान भोलेनाथ को बेहद जल्दी प्रसन्न होने वाला देवता भी माना जाता है। ग्राम पंचायत माझा तरहर शुक्ला पुरवा में दुर्गा प्रसाद शुक्ला के यहां श्रीमद् देवी भागवत कथा में भगवान शिव के महिमा को बताते कथावाचक पंडित हनुमंत लाल मिश्र ने कही। भाजपा जिला कार्यसमिति सदस्य घनश्याम जायसवाल, मदन मोहन जायसवाल और राधा रमन जायसवाल के साथ कथावाचक पंडित हनुमंत लाल मिश्र जी का माल्यार्पण कर श्रीमद् देवी भागवत पुराण व्यास आसन का परिक्रमा किया। व्यास पीठ पर विराजमान पंडित हनुमंत लाल मिश्र ने कथा की अमृत वर्षा करते हुए बताया कि भोलेनाथ का विवाह पार्वती जी के साथ हुआ था। इसके लिए पार्वती जी ने सैंकड़ों वर्षों तक कठिन तप किया था। तप के बाद एक वक्त ऐसा भी आया था जब पार्वती जी को भगवान शिव की परीक्षा का सामना करना पड़ा था। माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति के रूप में पाने के लिए सैकड़ों वर्षों तक कठोर तप किया था। उनकी तपस्या को देखकर देवताओं ने शिवजी से देवी पार्वती की मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना की थी। इसके बाद भोलेनाथ ने सप्तर्षियों को पार्वती जी की परीक्षा लेने के लिए भेजा। इस परीक्षा के दौरान सप्तर्षियों ने शिवजी के ढेरों अवगुणों को बताते हुए माता पार्वती से शिव जी से विवाह न करने का कहा लेकिन पार्वती जी अपने निर्णय से टस से मस नहीं हुईं.इस पर खुद भोलेनाथ ने माता पार्वती की परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
पार्वती के तप से प्रसन्न होकर शंकर जी उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें वरदान देकर अंतर्ध्यान हो गए। कुछ क्षणों बाद ही एक मगरमच्छ ने एक लड़के को पकड़ लिया और लड़का मदद के लिए पुकारने लगा। बच्चे की आवाज सुनकर पार्वती जी नदी किनारे पहुंची और उनका मन द्रवित हो गया। इस बीच लड़के ने माता पार्वती को देखकर कहा कि मेरी न मां है न बाप, न कोई मित्र ही है माता आप ही मेरी रक्षा करें। इस पर पार्वती जी ने मगरमच्छ से कहा कि ग्राह इस लड़के को छोड़ दें। इस पर मगरमच्छ ने कहा कि दिन के छठे पहर जो मुझे मिलता है उसे आहार बनाना मेरा नियम है। पार्वती जी के विनती करने पर मगरमच्छ ने लड़के को छोड़ने के बदले में पार्वती जी के तप से प्राप्त वरदान का पुण्य फल मांग लिया। इस पर पार्वती जी तैयार हो गईं। मगरमच्छ ने बालक को छोड़ दिया और तेजस्वी बन गया। अपने तप का फल दान करने के बाद पार्वती जी ने बालक को बचा लिया और एक बार फिर भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए तप करने बैठ गईं। इस पर भोलेनाथ दोबारा प्रकट हुए और पूछा कि तुम अब क्यों तप कर रही हो। मैंने तम्हें पहले ही मनमांगा दान दे दिया है। इस पर पार्वती जी ने अपने तप का फल दान करने की बात कही। इस पर शिवजी प्रसन्न होकर बोले मगरमच्छ और लड़के दोनों के स्वरूप में मैं ही था। मैं तुम्हारी परीक्षा ले रहा था कि तुम्हारा चित्त प्राणिमात्र में अपने सुख दुख का अनुभव करता है या नहीं। तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए ही मैंने ये लीला रचाई थी। अनेको रूप में दिखने वाला मैं ही एक सत्य हूं। अनेक शरीरों में नजर आने वाला मैं निर्विकार हूं। इस तरह पार्वती जी शिव जी की परीक्षा में उत्तीर्ण हुई और उनकी अर्धांगिनी बनी। डीपी शुक्ला ने बताया कि श्रीमद् देवी भागवत कथा 3 मई से शुरू होकर 11 मई को संपन्न हो गया। 12 मई को भंडारे के साथ प्रभु की कृपा से संपन्न होगा। इस अवसर पर राम सहाय शुक्ला शीतला प्रसाद शुक्ला घनश्याम शुक्ला संतराम शुक्ला महावीर शुक्ला शिवानंद शुक्ला दयानंद शुक्ला अशोक कुमार विजय कुमार विवेक दीपक आशीष कन्हैयालाल सौरभ गौरव चंदन अरविंद अतुल ओमकार पांडे बबलू दुबे सदानंद शुक्ला हनुमंत लाल शुक्ला धर्मेंद्र शशांक विवेक पांडे लल्लन पांडे रिंकू पांडे महेश शुक्ला संतोष चौबे मोनू मिश्रा कमलेश शुक्ला कार्तिक शुक्ला उर्फ कृष्णा शुक्ला सहित महिलाओं और बच्चों ने प्रत्येक दिवस देवी भागवत कथा सुनने में सम्मिलित रहे।
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