बदलता स्वरूप खगड़िया (बिहार)। विंध्याचल के बाबा दिनेश गुरु अलख ने समाहरणालय के सामने अष्टादस भुजेश्वरी मां दुर्गा मन्दिर प्रांगण में एक विशेष भेंट में मीडिया से कहा अघोर विश्वास के अनुसार अघोर शब्द मूलतः दो शब्दों ‘अ’ और ‘घोर’ से मिल कर बना है जिसका अर्थ है जो कि घोर न हो अर्थात् सहज और सरल हो। प्रत्येक मानव जन्मजात रूप से अघोर अर्थात् सहज होता है। आगे उन्होंने कहा बालक ज्यों ज्यों बड़ा होता है त्यों वह अंतर करना सीख जाता है और बाद में उसके अंदर विभिन्न बुराइयां और असहजताएं घर कर लेती हैं और वह अपने मूल प्रकृति यानी अघोर रूप में नहीं रह जाता। अघोर साधना के द्वारा पुनः अपने सहज और मूल रूप में आ सकते हैं और इस मूल रूप का ज्ञान होने पर ही मोक्ष की प्राप्ति संभव है। अघोर दृष्टि में स्थान भेद भी नहीं होता अर्थात् महल या श्मशान घाट एक समान होते हैं। बाबा दिनेश गुरु अलख ने कहा शिव के पांच रूपों में से एक रूप ‘अघोर’ है। अंतर्राष्ट्रीय आध्यात्मिक केन्द्र के संस्थापक महर्षि अरविन्द ने विंध्याचल के बाबा दिनेश गुरू अलख का स्वागत गुलाब का पुष्प भेंट कर किया। मौके पर उपस्थित थे माता प्रमिला सिंह, पार्थ सिंह, आरती देवी, लक्ष्मी, वैष्णवी केशव सिंह तथा अन्नू देवी चंद्रशेखर मंडल, प्रकाश यादव, लुचो आदि।
