बदलता स्वरूप लेखक पंकज कुमार मिश्रा जौनपुर
आने वाले दिनों में राहुल न सिर्फ मोदी जी के लिए बल्कि पूरे देश और उस पूरी व्यवस्था और विचारधारा के लिए एक गंभीर और नासूर समस्या साबित होने जा रहे है । कांग्रेस ही नहीं लोकतंत्र और बहुलवाद में विश्वास ना रखने वाले गैर कांग्रेसी दलों और आम जन को भी राहुल गाँधी में उम्मीद की किरण दिखाई दे रही थी वो उनके विदेशी बयानों के बाद अब धूमिल पड़ने लगी है । लेकिन कांग्रेस और राहुल दोनों को याद रखना होगा कि कांग्रेस जिस रास्ते से भटक गई है उसे उसी रास्ते पर फिर वापस लौटना होगा। गांधी और नेहरू का रास्ता ही कांग्रेस की वापसी सुनिश्चित कर सकता है । हालाँकि जहां एक तरफ गरीब , किसान, मजदूर और नौजवान के बदतर हालात कांग्रेस के मुख्य एजेंडे में शामिल हुए है वहीं दूसरी तरफ कारपोरेट जगत के भ्रष्टाचार के खिलाफ जनविरोध को मजबूत अभिव्यक्ति मिली है । लेकिन यह संघर्ष और व्यापक हो और समाज के विभिन्न समूहों को अपने साथ जोड़ सके इस निमित्त पूरे देश में गांधी वादी तरीके से अभियान चलाना होगा ।
राहुल गाँधी अपने विदेशी दौरों पर लगातार इस तरह के भारत विरोधी तत्वों के साथ क्यों दिख रहे हैं ।आप अगर मोदी की राजनीति से सहमत नहीं हैं तो फ़ौरन अपनी चिरकुटई पर उतरते हुए कहेंगे कि मोदी विरोध भारत विरोध थोड़े ही है, लेकिन अपनी 2 पैसे की अक़्ल लगा कर अगर आप अपनी आँखें खोलेंगे तो पाएंगे कि राहुल अब ऐसी संस्थाओं के साथ गलबहियां कर रहे हैं जिनका भारत के खिलाफ लॉबीइंग करने का इतिहास रहा है. भारत के खिलाफ वो लॉबीइंग वो तब भी कर रहे थे जब मनमोहन इस देश के प्रधानमंत्री पद के अपने अंतिम साल में थे और उन संस्थाओं का ये प्रयास कई गुना मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही शुरू हो गया। अभी हडसन इंस्टिट्यूट के साथ जो राहुल गाँधी की फोटो आईं हैं वो उन बातों को भी पुख्ता कर देती हैं जिन्हें आज तक कांस्पीरेसी थ्योरी मान कर आँखें मूँद ली जाती थीं । हडसन इंस्टिट्यूट के इस बंद दरवाजों के पीछे हुए इवेंट में राहुल के साथ बैठीं हैं सुनीता विश्वनाथ । ये वहीँ सुनीता विश्वनाथ हैं जो सोरोस इकोसिस्टम की ब्लू आइड कठपुतली रही हैं । वही सोरोस जो खुले तौर पर मोदी से जंग का ऐलान कर चुका है ।
हडसन इंस्टीट्यूट की मीटिंग में जिन 3 चेहरों पर अभी तक किसी की नज़र नहीं गयी वो आईएएमसी के लोग हैं । उनमें से एक रशीद अहमद है जो उसका प्रेसिडेंट है, एक अजित साही है जो एक जमाने में सिमी और मुजाहिद्दीन को तहलका मैगज़ीन के माध्यम से क्लीन चिट दिलवाने की मुहिम चलाये हुए था । तहलका में ही उसकी कलीग राना अयूब थी । अब आप समझ सकते हैं कि जिस राना अयूब के आर्टिकिल इंडिया में कोई नहीं सीरयसली लेता वो अचानक अमेरिका में मौजूद इकोसिस्टम की आँखों का तारा कैसे बन गयी । इन सबके पाप खाली भारत के खिलाफ पैसे देके भारत को ब्लैक लिस्ट कराने की लोब्यिंग तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि हालिया त्रिपुरा दंगों में फेक न्यूज फैला कर हिन्दू मुस्लिम दंगा करवाने के मामले में इन पर देशद्रोह का केस भी दर्ज है । अमेरिका में बैठे ये लोग अब तक दूर से ही भारत के लोकतंत्र को इन्फ़्लुएंस करने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन इनका एक बहुत बड़ा इकोसिस्टम (राजनैतिक/बिजनेस/पत्रकार/एक्टिविस्ट) अभी भारत में ही है. जिन नैरेटिव को ये अमेरिका में बैठ के गढ़ते हैं उन्हीं नैरेटिव पर दंगे भड़काने का काम इनके लोकल स्लीपर सेल करते हैं ।
यह व्यवस्था शुरू कलम और कंप्यूटर से होती है लेकिन अंततः ए के 47 हाथ में लिए लश्कर/सलाउद्दीन/इंडियन मुजाहिद्दीन/सिमी/हुजी तक भी पहुँचती है । मोदी विरोध में आप इतने अंधे भी न हो जाएँ कि उस तंत्र की गोद में जाकर बैठ जाएँ जिसने आपके देश को काट के पाकिस्तान लिया फिर बांग्लादेश में आपका नरसंहार करके आपको फिर से टुकड़े टुकड़े करने के अजेंडे पर काम शुरू कर दिया । अब तक राहुल को एक बेनिफिट ऑफ़ डाउट था कि वो शायद इतने समझदार नहीं है कि आसपास क्या घट रहा है उसे समझ सकें, पर अब इस दौरे से ये स्पष्ट है कि राहुल के कान में जो लोग फुसफुसा रहे हैं उनके बारे में पूरे देश को जानकारी और विजिबिलिटी रहनी चाहिए। देश हमारा है, देश की समस्याएं हमारी हैं और इनका समाधान भी हम आपस में मिलकर ही करेंगे।