बदलता स्वरूप लीलापुर-प्रतापगढ़। परसीपुर सिंधौर दूल्हेपुर के रामलीला मैदान में सामूहिक रुप से हो रहे सात दिवसीय संगीतमयी रामकथा के पांचवे दिन चित्रकूट से पधारे कथा व्यास आचार्य बृज किशोर दास जी महराज ने सीता विवाह का प्रसंग सुनाते हुए बताया कि मिथिला नरेश राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह हेतु स्वयंवर रचाया था जिसका निमंत्रण उन्होंने महर्षि विश्वामित्र को भी भेजा था। उस समय श्री राम और लक्ष्मण ऋषि विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में थे इसलिए उन्होंने सोचा कि श्री राम लक्ष्मण को भी मिथिला में उनके साथ चलना चाहिए। उसके बाद ऋषि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण के साथ मिथिला नगर में पहुंचते हैं जहां पर राजा जनक अतिथि रूप में उनका स्वागत करते हैं। राजा जनक ऋषि विश्वामित्र को कहते हैं कि उन्हें अति प्रसन्नता हुई है कि आप हमारे नगर में मेरी पुत्री सीता को विवाह के लिए आशीर्वाद देने आए हैं। अगले दिन राजा जनक के महल मे दरबार लगता है जिसमें देवी सीता का स्वयंवर रचाया गया था। गुरु का आदेश मिलते ही मर्यादा पुरुषोत्तम ने शिव धनुष का खंडन किया जिसके बाद माता सीता ने उनके गले में वर माला डाली जिसके बाद विवाह सम्पन्न हुआ । महिलाओं ने मंगलगान गाए । इस दौरान सुनील मिश्र, शिव शंकर तिवारी, राजकुमार दुबे, राबेन्द्र दुबे, सत्यराज सरोज, बब्लू वर्मा, सुनील मिश्र, राजीव तिवारी, माताफेर तिवारी, राजेश गौतम उर्फ खन्ने, आदि मौजूद रहे।
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