शिक्षा विकास का मूल साधन है-घनश्याम जायसवाल

दस छात्रों को कुर्सी देकर सम्मानित किया गया

बदलता स्वरूप गोंडा। शिक्षा विकास का मूल साधन है। शिक्षा के जरिए मनुष्य के ज्ञान एवं कला कौशल में वृद्धि करके उसके अनुवांशिक गुणों को निखारा जा सकता है और उसके व्यवहार को परिमार्जित किया जा सकता है। शिक्षा व्यक्ति की बुद्धि, बल और विवेक को उत्कृष्ट बनाती है। उक्त सुविचार भाजपा जिला कार्यसमिति सदस्य घनश्याम जयसवाल ने व्यक्त कर प्राथमिक विद्यालय ऊंचे दुबरा में नियमित विद्यालय आने वाले दस विद्यार्थियों को कुर्सी देकर सम्मानित भी किया। इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक उमेश कुमार पांडेय नीरज पांडेय पप्पू निषाद मौजूद रहे।

कक्षा 1 से खुशी व सुमन, कक्षा 2 से मधुपाल, मोहम्मद आयाम, कक्षा तीन से शुभी और सरस्वती, कक्षा चार से दिलीप और विवेक कक्षा 5 से मोहम्मद और मोहम्मद फारूक को सम्मानित किया गया। घनश्याम जायसवाल ने कहा कि माता-पिता की जिम्मेदारी होती है कि वह बच्चे को प्रतिदिन विद्यालय भेजें और घरों पर भी प्रत्येक दिवस बच्चों को शिक्षा की व्यवस्था स्वयं करें विद्यालय ही प्रथम पाठशाला होता है जहां पर बच्चा अपने माता-पिता अभिभावक से बोलना सीखता है । बोलचाल की भाषा में लोगों को सम्मान करना संस्कार के साथ-साथ पढ़ने की ललक भी वहीं से प्राप्त होती है। शिक्षा जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया हैं। व्यक्ति औपचारिक तथा अनौपचारिक साधनों से जीवन भर शिक्षा प्राप्त करता रहता है। वह अपने दैनिक जीवन में अपने वातावरण एवं परिवेश के साथ अन्त: क्रिया करते हुएँ अनेक अनुभव प्राप्त करता है। इन अनुभवों से जो ज्ञान उसे प्राप्त होता है वही व्यापक अर्थ में शिक्षा है। विद्यार्थी जीवन में प्राप्त शिक्षा भी इस व्यापक शिक्षा का एक अंग है। शिक्षा ऐसी प्रक्रिया है जो जन्म काल तथा प्रकृति प्रदत्त शक्तियों का विकास करती है। शिक्षा व्यक्ति को सभ्य एवं सुसंस्कृत नागरिक बनाती है। शिक्षा के इतने महत्वपूर्ण योगदान के कारण आज समाज में शिक्षा को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है।