रेलवे चिकित्सालय को मिली डिजिटल एक्स-रे मशीन

रेल चिकित्सालय का खेल निराला, जो चिकित्सक मौजूद हैं उनके लिए संसाधन नहीं और जो संसाधन लगाए जा रहे हैं उनके लिए डॉक्टर नहीं

एस डी मिश्रा
बदलता स्वरूप गोंडा। लखनऊ मंडल मुख्यालय से सड़क मार्ग से गोंडा पहुंचे मंडल रेल प्रबंधक आदित्य कुमार ने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार रेलवे चिकित्सालय गोंडा में लगभग अट्ठाइस लाख रुपये की लागत से लगायी गयी डिजिटल एक्स-रे मशीन को आन करके किया उद्घाटन। इस दौरान रेलवे के आला अफसर सहित अन्य रेलकर्मी उपस्थित रहे। इसके बाद मंडल रेल प्रबंधक डीजल शैड पहुंचे और वहाँ के प्रबंधन व रख रखाव आदि का निरीक्षण कर अन्य समस्याओं की जानकारी ली। साथ ही आवश्यक दिशा निर्देश भी दिया। इसके उपरांत डीआरएम ने रेलवे यार्ड का भी निरीक्षण किया और आवश्यक दिशा निर्देश दिया। अब विचारणीय विषय यह है कि जिस विभाग के डाक्टर मौजूद हैं उनके पास ईलाज करने के संसाधन की व्यवस्था नहीं है और जिस विभाग के डाक्टर नहीं हैं उसके लिए लाखों रुपए की मशीन लगायी गयी है, रेलवे चिकित्सालय मे पहले से ही एक्स-रे मशीन कार्यरत है और ठीक काम कर रही है तो फिर इतनी बड़ी लागत लगा कर दूसरी मशीन की क्या आवश्यकता थी। जबकि चिकित्सालय में कोई हड्डी रोग विशेषज्ञ डाक्टर नहीं है, रेलवे चिकित्सालय में दो डाक्टर बालरोग के विशेषज्ञ मौजूद हैं परंतु उनको संसाधन के अभाव में बाल रोगी को लखनऊ या प्राईवेट अस्पतालों में रेफर करना पड़ता है। गोंडा जंक्शन रेलवे में लगभग पांच हजार रेलकर्मियों के बच्चों के लिए चिकित्सालय में आईसीयू की व्यवस्था नहीं है, रेल अफसरों को अपने रेलकर्मियों का विशेष ध्यान देना चाहिए। बताते चलें मंडल रेल प्रबंधक का निरीक्षण लगते ही आनन-फानन में रेल अधिकारियों द्वारा रेलवे स्टेशन गोंडा के सामने से जय नारायण चौराहे तक बड़े-बड़े गड्ढों को मिट्टी व गिट्टी डालकर बराबर कर दिया गया क्योंकि उन्हें सड़क के रास्ते से ही निरीक्षण करने जाना था। वहीं रेलवे सोनी गुमटी की ओर ले जाने के लिए उन्हें 10 किलोमीटर चक्कर काट कर ले जाया गया क्योंकि रेलवे स्टेशन से सतई पुरवा होकर ले जाते तो शायद रेलवे की स्थिति देखकर उनकी भौहें चढ़ जातीं। इस बरसात के मौसम में रेलकर्मी अपने रेलवे आवास में डर डर कर दिन रात बिता रहे हैं, कब कहाँ से कोई जहरीला जीव घर में आ जाये इसका डर बना रहता है और हालात तब और बिगड़ जाता है जब विद्युत व्यवस्था भी खराब हो।

वहीं अगर रेलवे की सड़कों की बात करें तो स्थित‌ यह है कि रेलवे की कोई सड़क पैदल चलने लायक नही है। जब स्टेशन आने वाला मुख्य मार्ग ही जर्जर हो तो बाकी सड़कों की क्या बात करें। रेलवे को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। रेलवे के उच्च अधिकारी निरीक्षण के नाम पर खानापूर्ति करते रहे हैं। मुख्यालय से आकर कुछ चुनिंदा स्थानों का निरीक्षण करके इतिश्री करके वापस हो जाते हैं। रेल अफसरों को अवगत कराना है कि रेलकर्मी आपका अपना परिवार है इनकी सुरक्षा और संरक्षा करना आपका दायित्व है। इस संबंध में रेल कर्मियों के सुरक्षा और संरक्षा के लिए मंडल मुख्यालय लखनऊ के सभागार में आए दिन मंडल रेल प्रबंधक आदित्य कुमार एवं अन्य अधिकारियों के साथ कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं लेकिन धरातल पर उन कार्यक्रमों का असर शून्य दिखता नजर आ रहा है।