वायु भी शिव जी का ही दिव्य स्वरूप है-रवि शंकर

बदलता स्वरूप गोन्डा। शहर के शारदा मैरिज लान में चल रहे 9 दिवसीय महापुराण कथा में दुसरे दिन गुरुवर रवि शंकर महाराज जी ने ब्रह्मा जी की उत्पत्ति कैसे हुई इसकी कथा सुनाई। इस दौरान उन्होंने बताया कि भगवान की कई मूर्तियां मानी गईं हैं। जिसमें अष्ट मूर्ति बड़ी दिव्य मानी गई है। अष्ट मूर्ति क्या है पृथ्वी। जिस पृथ्वी पर हम विराजमान हैं बैठे हैं घर मकान बनाते हैं। अगर पड़ोस की जगह मिल रही हो तो लालायित हो जाते हैं कि वो जगह हमें मिल जाए। वो भगवान का ही एक स्वरूप है। भगवान की मूर्ति है। इसीलिए पार्थिव पूजन में मिट्टी का प्रयोग किया जाता है। वो हाथ में मिट्टी नहीं लगती है। बल्कि उस मिट्टी के शिवलिंग में भगवान शिव के प्रथम स्वरूप का दर्शन होता है और आप भगवान की भक्ति से जुड़ जाते हैं। रविशंकर जी कथा सुनाते हुए आकाशमंडल को भगवान का द्वितीय स्वरूप बताया। उन्होंने बताया ये जो वायु हमारे अंदर प्रवेश कर रही होती है। ये भी शिव जी का ही दिव्य स्वरूप है। जल, अग्नि ये पांच जिसे पंच महाभूत हम कहते हैं। ये भगवान शंकर के मूर्त स्वरूप हैं। इन्हें अष्ट मूर्ति कहा गया है। गुरु जी ने बताया कि हम लोग कहते हैं कि भगवान कहां हैं। उन्हीं शिव जी के आठ मूर्तियों में से सात मूर्तियों का प्रत्यक्ष दर्शन जीव करता है। और आठवें मूर्ति का एहसास करता है। कथा के दौरान बीच-बीच में भजन गायक शिवा शुक्ला और राघव पंडित अपनी टीम के साथ भजनों के गंगा की निर्मल धारा प्रवाह करते रहे। जिसमें श्रद्धालुओं ने मस्त होकर डुबकी लगाई। इस कार्यक्रम में मुख्य यजमान आरती सोनी व संतोष सोनी सहित अन्य भक्तों ने आरती किया।उसके बाद सभी भक्तों को प्रसाद वितरण किया गया। कार्यक्रम के दौरान संदीप मेहरोत्रा,शिव शंकर सोनी,अमित सोनी,रवि सोनी,दीपक मराठा,रमेश गुप्ता,राम शंकर कसौधन, देवेंद्र सोनी, राहुल शर्मा,विशाल बंसल सहित भारी संख्या में श्रद्धालु मौजूद रहे।