फिल्म चम्पारण मटन की ख़ुशबू मुंबई से ऑस्कर अवार्ड तक

बदलता स्वरूप मुंबई। पुणे के फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कि छात्र रंजन कुमार के निर्देशन में भारतीय नवनिर्मित फिल्म चम्पारण मटन दुनियाभर में सराहना मिल रही है। बिहार कि बैशाली के एक साधारण अभियंता निर्देशन रंजन द्वारा निर्मित लधु फिल्म चंपारण मटन ऑस्कर के सेमीफाइनल तक पहुंच कर चौथे स्थान प्राप्त कर बिहार ही नहीं बल्कि भारत का भी नाम रौशन किया है। इस फिल्म का चयन नैरेटिव कैटेगरी में किया गया था और सेमीफाइनल में इसका 16 फिल्मों के साथ मुकाबला हुई, 200 देशों की 600 से अधिक कालेज एकेडमी की 2400 फिल्म शामिल हुई थी। इसी श्रेणी में अर्जेटिना, बेल्जियम, जर्मनी जैसे देश की फिल्में भी शामिल थी। नैरेटिव के अलावा इस फिल्म का चयन अन्य तीन श्रेणी में भी हुई थी, इसमें शामिल होने वाली यह पहली भारतीय फिल्म थी। स्टूडेंट अकादमी अवार्ड प्रशिक्षण संस्थानों व विश्वविद्यालयों में फिल्म बनाना वहां पढ़ रहे छात्र और छात्राओं को दिया जाता है और यह ऑस्कर की ही शाखा होती है। एमआईटी मुजफ्फरपुर के छात्र रहे फिल्म के डायरेक्टर रंजन कुमार ख़ुद भी आर्थिक तंगी का सामना किया है, उन्होंने आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने के कारण आईएसएम धनबाद की एम टेक कि पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी और फिर अपने रूचि अनुसार पुणे स्थित फिल्म ऐंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (FTII) में डायरेक्शन की पढ़ाई कर फाइनल ईयर प्रोजेक्ट के तहत रंजन ने एक फिल्म बनाई ‘चम्पारण मटन’।

डायरेक्टर रंजन द्वारा अपने ख़ुद की आर्थिक तंगी की अनुभव से आधारित कहानी पर बनाई गई यह फिल्म एक दिलचस्प मोड़ पर जा पहुंची‌ और फिल्म को ऑस्कर के लिए सेमीफाइनल राउंड के लिए सिलेक्ट कर ली गई। फिल्म के डायरेक्टर ईं. रंजन ने हमारे सहयोगी ईं. आरके जायसवाल से बात करते हुए फिल्म के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि यह फिल्म एक तीखे व्यंग्य पर आधारित पारिवारिक फिल्म है और एक आम आदमी को महंगी मटन खाने की जद्दोजहद को दिखाती बिहार के कलाकारों से सजी फिल्म है। साथ ही एमआईटी मुजफ्फरपुर के छात्र रहे कई कलाकार भी है। जिसमें एक गर्भवती महिला के पति की नौकरी कोरोना महामारी की वजह से चली जाती है, गर्भावस्था में उन्हें चंपारण मटन खाने की ख्वाहिश होती है। बिहार के कुछ जिलों में बिना नौकरी पेशा व आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार के लिए महंगी मटन खाना एक लक्जरी खान-पान के साथ-साथ घर के उत्साह पूर्ण बनाता है, वहीं कुछ जिलों में घर आए मेहमानों को कभी-कभी मटन खिलाने के वास्ते एक और अतिरिक्त दिन रोक लिया जाता है । इसी थीम को पर्दे पर उतारने की कोशिश की है। गौरतलब हो कि 1972 से यह अवार्ड अच्छे फिल्मों को स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड के तहत चार कैटेगरी में दिया जाता र्है। चंपारण मटन नैरेटिव समेत तीन अन्य श्रेणियों में शामिल किया गया था।

यह एक मात्र भारतीय फिल्म है, जो इस अवार्ड में शामिल हुई। यह फिल्म ऑस्कर के सेमीफाइनल में पहुंच कर पूरे देश को गौरवान्वित करने के साथ-साथ अमेरिका, फ्रांस और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की फिल्मों के साथ इस फिल्म ने अकेले स्टूडेंट अकादमी अवार्ड के सेमीफाइनल में अपनी जगह बनाई और ऑस्कर के स्टूडेंट एकेडमी अवार्ड 2023 के सेमीफाइनल राउंड में जगह बनाई। इस अवार्ड के लिए दुनियाभर के फिल्म प्रशिक्षण संस्थानों का चयन किया गया था। 1700 से अधिक फिल्मों को चुना गया था। वहीं एमआईटी मुजफ्फरपुर के पूर्ववर्ती छात्र रहे निर्देशक रंजन कुमार के इस सफलता पर एमआईटी के छात्रों में उत्साह बना हुआ है साथ ही बधाई देने बाले छात्रों का भी तांता लगा हुआ हैं। एमआईटी के प्रधानाचार्य ने विशेष कार्यक्रम के दौरान सम्मानित करते हुए उन्हें शुभकामनाएं दी।