झलकारी बाई की शौर्यगाथा ऐतिहासिक रहा है

बृजेश सिंह की कलम से
बदलता स्वरूप गोंडा। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के शौर्य के किस्से हम सभी ने बचपन से पढ़े और सुने हैं। लेकिन क्या आप उनके साथ ही अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली झलकारी बाई के बारे में जानते हैं। झलकारी बाई के सिर पर न रानी का ताज था न ही झांसी की सत्ता। लेकिन फिर भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करने के लिए उन्होंने अपने प्राणों की आहूति दे दी। झलकारी बाई के बारे में राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी कविता में लिखा है-
“जाकर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी।
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी।।”
झलकारी बाई बचपन से ही साहसी थीं। जब वो छोटी थी तभी उनकी मां का देहान्त हो गया। पिता ने उन्हें घुड़सवारी और हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया। कहा जाता है कि एक बार जंगल में एक तेंदुए ने उनपर हमला कर दिया, लेकिन झलकारी ने कुल्हाड़ी से उसे मार दिया। इतना ही नहीं एक बार कुछ डकैतों ने उनके गांव के व्यापारी के घर पर धाबा बोला, तो झलकारी ने उनका मुंहतोड़ जवाब देते हुए गांव से भागने पर मजबूर कर दिया। झलकारी के साहस से प्रभावित होकर उनकी शादी झांसी की सेना के सैनिक पूरन कोरी से कर दी।
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और झलकारी बाई का पहली बार आमना सामना एक पूजा के दौरान हुआ। झांसी की परंपरा के अनुसार गौरी पूजा के मौके पर राज्य की महिलाएं किले में रानी का सम्मान करने गईं। इनमें झलकारी भी शामिल थीं। जब लक्ष्मीबाई ने झलकारी को देखा तो वो हैरान रह गईं। क्योंकि झलकारी बिल्कुल लक्ष्मीबाई जैसी दिखती थीं। जब उन्हें झलकारी की बहादुरी के किस्से सुनने को मिले तो उन्हें सेना में शामिल कर लिया। झांसी की सेना में शामिल होने के बाद झलकारी ने बंदूक चलाना, तोप चलाना और तलवारबाजी का प्रशिक्षण लिया।
लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर किया अंग्रेजों का मुकाबला, डलहौजी की नीति के तहत झांसी को हड़पने के लिए ब्रिटिश सेना ने किले पर हमला कर दिया। इस दौरान पूरी झांसी की सेना ने लक्ष्मीबाई के साथ मिलकर अंग्रेजों को मुंहतोड़ जवाब दिया। अप्रैल 1858 में झांसी की रानी ने अपने बहादुर सैनिकों के साथ मिलकर कई दिनों तक अंग्रेजों को किले के भीतर नहीं घुसने दिया। लेकिन सेना के एक सैनिक दूल्हेराव ने महारानी को धोखा दे दिया। उसने अंग्रेजों के लिए किले का एक द्वार खोल कर अंदर घुसने दिया। ऐसे में जब किले पर अंग्रेजों का अधिकार तय हो गयाI तो झांसी के सेनापतियों ने लक्ष्मीबाई को किले से दूर जाने की सलाह ही। इसके बाद वो कुछ विश्ववसनीय सैनिकों के साथ किले से दूर चली गईं।
अंग्रेजों को चमका देने के लिए बनाई खास योजना में किले के भीतर हुए इस युद्ध में झलकारी बाई के पति शहीद हो गए। लेकिन इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों को खिलाफ एक योजना बनाई। उन्होंने लक्ष्मीबाई की तरह कपड़े पहने और सेना की कमान अपने हाथ ली। इतना ही नहीं अंग्रेजों को इस बात की भनक न पड़ पाए कि लक्ष्मीबाई किले से जा चुकी हैं ये सोचकर वो अंग्रेजों को चकमा देने के लिए किले से निकलकर ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज के कैंप में पहुंच गईं। जब तक अंग्रेज उन्हें पहचान पाते तब तक लक्ष्मीबाई को पर्याप्त समय मिल गया। इस घटना का जिक्र मशहूर साहित्यकार वृंदावनलाल वर्मा के ऐतिहासिक उपन्यास ‘झांसी की रानी-लक्ष्मीबाई’ में भी है। उन्होंने लिखा है, “झलकारी ने अपना श्रृंगार किया। बढ़िया से बढ़िया कपड़े पहने, ठीक उसी तरह जैसे लक्ष्मीबाई पहनती थीं। गले के लिए हार न था, परंतु कांच के गुरियों का कण्ठ था। उसको गले में डाल दिया। प्रात:काल के पहले ही हाथ मुंह धोकर तैयार हो गईं। पौ फटते ही घोड़े पर बैठीं और ऐठ के साथ अंग्रेजी छावनी की ओर चल दिया। साथ में कोई हथियार न लिया। चोली में केवलCrafting एक छुरी रख ली। थोड़ी ही दूर पर गोरों का पहरा मिला। टोकी गई। झलकारी को अपने भीतर भाषा और शब्दों की कमी पहले-पहल जान पड़ी। परंतु वह जानती थी कि गोरों के साथ चाहे जैसा भी बोलने में कोई हानि नहीं होगी। झलकारी ने टोकने के उत्तर में कहा, ‘हम तुम्हारे जडैल के पास जाउता है।’ यदि कोई हिन्दुस्तानी इस भाषा को सुनता तो उसकी हंसी बिना आये न रहती। एक गोरा हिन्दी के कुछ शब्द जानता था। बोला, ‘कौन?’
रानी -झांसी की रानी, लक्ष्मीबाई, झलकारी ने बड़ी हेकड़ी के साथ जवाब दिया। गोरों ने उसको घेर लिया। उन लोगों ने आपस में तुरंत सलाह की, ‘जनरल रोज के पास अविलम्ब ले चलना चाहिए।’ उसको घेरकर गोरे अपनी छावनी की ओर बढ़े। शहर भर के गोरों में हल्ला फैल गया कि झांसी की रानी पकड़ ली गई. गोरे सिपाही खुशी में पागल हो गये। उनसे बढ़कर पागल झलकारी थी. उसको विश्वास था कि मेरी जांच – पड़ताल और हत्या में जब तक अंग्रेज उलझेंगे तब तक रानी को इतना समय मिल जावेगा कि काफी दूर निकल जावेगी और बच जावेगी।” झलकारी रोज के समीप पहुंचाई गई। वह घोड़े से नहीं उतरी। रानियों की सी शान, वैसा ही अभिमान, वही हेकड़ी- रोज भी कुछ देर के लिए धोखे में आ गया।”अगर भारत की 1% महिलाएं भी झलकारी बाई जैसी हो जाएं, तो अंग्रेजों को जल्दी ही भारत छोड़ना होगा
ब्रिटिश जनरल ह्यूग रोज
बहादुरी देख अंग्रेजों के उड़े होश
वृंदावनलाल वर्मा ने आगे लिखा है कि दूल्हेराव ने जनरल रोज को बता दिया कि ये असली रानी नहीं है। इसके बाद रोज ने पूछा कि तुम्हें गोली मार देनी चाहिए। इस पर झलकारी ने कहा कि मार दो, इतने सैनिकों की तरह मैं भी मर जाऊंगी। झलकारी के इस रूप को अंग्रेज सैनिक स्टुअर्ट बोला कि ये महिला पागल है। इस पर जनरल रोज ने कहा नहीं स्टुअर्ट अगर भारत की 1 फीसदी महिलाएं भी इस जैसी हो जाएं तो अंग्रेजों को जल्दी ही भारत छोड़ना पड़ेगा ‘। रोज ने झलकारी को नहीं मारा। झलकारी को जेल में डाल दिया गया और एक हफ्ते बाद छोड़ दिया गया। आज भी झलकारी बाई की वीरता की कहानियां देशभर में पढ़ी जाती हैं।