5 फैक्टर्स… जिनमें छुपी है तीन राज्यों में कांग्रेस की करारी हार की कहानी

बृजेश सिंह विशेष संवाददाता
राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में कांग्रेस को मिली करारी शिकस्त, बीजेपी को बंपर जीत मिली है। कांग्रेस जिन दो राज्यों में सत्ता में थी वहां न योजनाएं काम आईं और न ही फोकस।

मध्य प्रदेश में एंटी इंकम्बेंसी जहां पार्टी विपक्ष में थी। इन राज्यों में कौन से पांच फैक्टर्स ने कांग्रेस का काम तमाम कर दिया? राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को जीत मिली है। इन तीन में से दो राज्यों, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार थी। बीजेपी ने मध्य प्रदेश में प्रचंड जीत के साथ सरकार बचाई , राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस को पटखनी दे दी। अपनी सरकार वाले दोनों राज्यों में सरकार की योजनाएं कांग्रेस का बेड़ा पार नहीं करा पाईं तो मध्य प्रदेश में एंटी इंकम्बेंसी भी ग्रैंड ओल्ड पार्टी नहीं भुना पाई। राजस्थान और मध्य प्रदेश समेत तीनों राज्यों में आखिर वह कौन से फैक्टर्स रहे जिन्होंने कांग्रेस का काम तमाम कर दिया? आइए, नजर डालते हैं। सबसे बड़ा अंतर पैदा किया शीर्ष नेतृत्व के फैक्टर ने। बीजेपी की ओर से तीनों राज्यों में लोकल लीडरशिप जमीन पर काम कर रही थी तो वहीं प्रचार से लेकर रणनीति तक, शीर्ष नेतृत्व फ्रंट से लीड करता नजर आया। वहीं कांग्रेस में इसके ठीक उलट तस्वीर नजर आई। कांग्रेस में हाईकमान को इग्नोर कर तीनों राज्यों में लोकल लीडरशिप की ही चली। मध्य प्रदेश में टिकट वितरण से लेकर गठबंधन, प्रचार रणनीति तक से जुड़े सभी फैसलों पर कमलनाथ की छाप साफ नजर आई। कांग्रेस इंडिया गठबंधन के अपने गठबंधन सहयोगी समाजवादी पार्टी के साथ अंतिम समय सीट शेयरिंग पर बातचीत करती रही और दूसरी तरफ कमलनाथ की जिद के चलते हर सीट पर उम्मीदवार उतार दिए। इंडिया गठबंधन की पहली साझा रैली भी भोपाल में होनी थी लेकिन कमलनाथ ने इसमें भी अड़ंगा लगा दिया। राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व ने चुनाव रणनीतिकार सुनील कानूगोलू की टीम की सेवा लेने को कहा तो कमलनाथ ने इसके लिए भी मना कर दिया। इसी तरह राजस्थान में भी कांग्रेस हाईकमान की भूमिका एक रबर स्टाम्प जैसी ही नजर आई। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे कर्नाटक मॉडल पर चुनाव से दो महीने पहले सभी सीटों पर उम्मीदवार घोषित करने की बात कहते तो रहे लेकिन नेतृत्व ऐसा कर नहीं पाया। नामांकन दाखिल करने के लिए अंतिम तिथि से चंद दिन पहले तक कांग्रेस उम्मीदवारों की लिस्ट आई। जिस शांति धारीवाल को टिकट के प्रस्ताव पर खुद सोनिया गांधी और राहुल गांधी भड़क गए थे, गहलोत उनको भी टिकट दिलाने में कामयाब रहे। गहलोत ने उस सर्वे की रिपोर्ट को ही खारिज कर दिया जो कानूगोलू से कांग्रेस नेतृत्व ने कराया था। छत्तीसगढ़ में भी कहानी कुछ ऐसी ही थी।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को सबसे बड़ा ओबीसी फेस तक कहा जाने लगा था। बीजेपी के राष्ट्रवाद की काट के लिए छत्तीसगढ़िया अस्मिता के बघेल दांव में विपक्ष देश की सत्ता पर काबिज दल को रोकने का फॉर्मूला तलाशने लगा था। कांग्रेस को इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में भी कांग्रेस को हाईकमान का इग्नोर होना भारी पड़ा। राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ तीनों ही राज्यों में अशोक गहलोत, कमलनाथ और भूपेश बघेल फ्रीहैंड होकर चुनाव अभियान की बागडोर थामे थे और तीनों ही राज्यों में कांग्रेस को शिकस्त मिली। वहीं इन तीनों राज्यों के ठीक उलट तेलंगाना में कमान हाईकमान संभाले नजर आया और वहां पार्टी पहली बार चुनाव जीतकर सरकार बनाने में सफल रही। कांग्रेस की हार के पीछे एक बड़ा फैक्टर चुनावी वादे और योजनाएं भी रहे। कांग्रेस सरकार की योजनाएं भी नाकॉफी रही, इनमें कोई भी स्कीम ऐसी नहीं थी जिसमें जनता तक सीधा पैसा पहुंचता हो। गहलोत ने चिरंजीवी योजना शुरू की, इंश्योरेंस की रकम डबल करने, महिलाओं को 10 हजार रुपये सालाना देने, एमएसपी को लेकर कानून बनाने का वादा किया। वहीं बीजेपी ने कम से कम छह लाख महिलाओं को लखपति दीदी बनाने, किसान सम्मान निधि का पैसा दोगुना करने और किसानों की नीलाम हुई जमीन वापस कराने का वादा किया। फर्क ये रहा कि किसान सम्मान निधि का पैसा लोगों को पहले से ही मिल रहा है। जनता ने भविष्य के सुनहरे सब्जबाग की जगह वर्तमान पर यकीन किया। कुछ यही कहानी छत्तीसगढ़ में भी रही। भूपेश बघेल सरकार ने योजनाएं तो कई चलाईं। सीएम बघेल ने उनके प्रचार-प्रसार पर अच्छी खासी रकम खर्च की, अपने ब्रांडिंग पर भी ध्यान दिया। ये वर्तमान सियासी परिदृश्य में जरूरी भी है। लेकिन वह कैश बेनिफिट के मोर्चे पर चूक गए। सूबे में पुरुषों से अधिक महिला वोटर्स थीं। बीजेपी ने सत्ता में आने पर 12 हजार रुपये सालाना देने का दांव चलने के साथ ही रमन सरकार के समय धान खरीद को लेकर किसानों का दो साल का बकाया बोनस देने का भी वादा किया। सीएम भूपेश बघेल ने दूसरे चरण की वोटिंग से महज पांच दिन पहले छत्तीसगढ़ गृह लक्ष्मी योजना के तहत महिलाओं को 15 हजार रुपये सालाना देने का वादा किया। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी ।

इन दोनों राज्यों के ठीक उलट मध्य प्रदेश में बीजेपी की सरकार ने कई लोक लुभावन योजनाओं का ऐलान करने की बजाय एक योजना पर फोकस किया- लाडली बहना योजना। शिवराज सरकार की ये योजना बीजेपी के लिए ट्रंप कार्ड साबित हुई। आधी आबादी महिलाओं के आधे वोट कमल का फूल निशान पर गए। कांग्रेस ने महिलाओं को 1500 रुपये हर महीने देने का वादा किया लेकिन शिवराज सरकार ने चुनाव से कुछ महीने पहले लाडली बहना योजना शुरू की और मई महीने से ही इस योजना के तहत 1250 रुपये मासिक महिलाओं के खाते में भेजना भी शुरू कर दिया था। शिवराज सरकार का ये दांव कांग्रेस के नारी सम्मान योजना के वादे पर भारी पड़ा। कांग्रेस ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी के वादों की तरह ही मध्य प्रदेश में भी बीजेपी सरकार के इस दांव को काउंटर करने में विफल रही। कांग्रेस 1500 हर माह देने के वादे को लेकर जनता के बीच गई लेकिन जनता ने शिवराज सरकार के 1250 रुपये प्रति माह के पक्ष में अपना जनादेश दिया जिसका लाभ उसे मिल रहा है। बीजेपी और कांग्रेस के बीच बड़ा गैप इससे भी आया। डिलीवरी वर्सेज प्रॉमिस की लड़ाई में बीजेपी भारी पड़ी। वह जहां सत्ता में थी, वहां डिलीवर किया और जहां विपक्ष में थी वहां अपने सबसे बड़े चेहरे से प्रॉमिस कराया। कांग्रेस अपनी सरकार वाले राज्यों में डिलीवरी नहीं कर पाई और वादे तो किए लेकिन जनता ने उनपर यकीन नहीं किया। हर राज्य में दो प्रमुख चेहरे थे। कांग्रेस की हार के पीछे एक बड़ा फैक्टर गुटबाजी भी रहा। मध्य प्रदेश में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह तो राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट की खींचतान ने कांग्रेस को डैमेज किया। छत्तीसगढ़ में भी कहानी कुछ ऐसी ही थी। विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले तक सीएम भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव दिल्ली की दौड़ लगाते रहे। चुनाव में जब छह महीने से भी कम समय बचा था, टीएस सिंहदेव को बघेल सरकार में डिप्टी सीएम बनाया गया। तीनों ही राज्यों में अंतर्कलह का भी मतदाताओं के बीच गलत संदेश गया और कांग्रेस को चुनाव नतीजों में इसका नुकसान उठाना पड़ा।

कांग्रेस की हार के पीछे उसके सॉफ्ट हिंदुत्व के फॉर्मूले को भी बताया जा रहा है। कांग्रेस के सॉफ्ट हिंदुत्व को लेकर भ्रम की स्थिति बनी, मध्य प्रदेश कांग्रेस कमलनाथ को हनुमान भक्त बताती रही तो वहीं कमलनाथ बागेश्वर धाम के धीरेंद्र शास्त्री से लेकर पंडित प्रदीप मिश्रा तक की कथा कराने में लगे रहे। छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल भी राम वन गमन पथ जैसी परियोजनाओं के साथ सॉफ्ट हिंदुत्व की राह चलते नजर आए। कहा जा रहा है कि कांग्रेस को इसका भी नुकसान उठाना पड़ा। तर्क ये दिए जा रहे हैं कि हिंदुत्व के नाम पर जिसे वोट देना है, वह बीजेपी के साथ जाएगा कि डुप्लिकेट के साथ। कांग्रेस को वोटों के ध्रुवीकरण का भारी नुकसान हुआ। बीजेपी ने राजस्थान में कन्हैयालाल हत्याकांड, जोधपुर दंगे जैसी घटनाओं को चुनाव प्रचार के दौरान खूब उछाला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक, बीजेपी के लगभग हर बड़े नेता ने इन मुद्दों को लेकर कांग्रेस पर जमकर वार किए और तुष्टिकरण की राजनीति करने का आरोप लगाया। इसी तरह मध्य प्रदेश में प्रचार की शुरुआत से बीजेपी की रणनीति उदयनिधि स्टालिन के बयान को आधार बनाकर कांग्रेस की सनातन विरोधी इमेज बनाने की रही।

बीजेपी ने उज्जैन में महाकाल कॉरिडोर, सागर में रविदास मंदिर, परशुराम जन्मस्थली जानापाव में परशुराम मंदिर समेत कई मंदिर और कॉरिडोर बनवाए और इन्हें चुनाव में उपलब्धि के रूप में जनता के बीच भी लेकर गई. बीजेपी को इन सबका फायदा भी मिला। भारतीय जनता पार्टी ने मध्य प्रदेश में 230 में से 163 सीटें जीतकर सरकार बरकरार रखी है, वहीं राजस्थान में भी हर बार सरकार बदलने का रिवाज कायम रहा। राजस्थान में बीजेपी को 199 में से 115, कांग्रेस को 69 सीटों पर जीत मिली है, अन्य के हिस्से में भी 15 सीटें आई हैं। 90 सीटों वाले छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 54 और कांग्रेस को 35 सीटों पर जीत मिली है, अन्य के हिस्से भी एक सीट आई है।