गीता के आदर्शों के अनुसरण से ही भारत बनेगा विश्वगुरु : गांगेय हंस

गीता प्रसार यात्रा से हुआ 23वां विराट गीता सम्मेलन

सांस्कृतिक प्रस्तुतियों से महका रामलीला का आंगन

बदलता स्वरूप गोण्डा। गीता किसी एक पंथ का ग्रंथ नही है। यह ऐसा वैश्विक दर्शन है जिसमें सभी धर्मों का मूल तत्व है। गीता के इसी विराट दर्शन के कारण विश्व भर में लोकप्रिय है। भविष्य में भारत गीता दर्शन का अनुसरण करके ही विश्व गुरु बनेगा। उक्त विचार विराट गीता सम्मेलन में वाराणसी के प्रख्यात आध्यात्मिक विद्वान राजर्षि गांगेय हंस ने व्यक्त किए। मालवीय नगर स्थित रामलीला मैदान में 23वें विराट गीता सम्मेलन का शुभारंभ रविवार को प्रातः 10 बजे श्रद्धालुओं के गीता ज्ञान प्रसार यात्रा से हुआ। प्रवचन सत्र में श्रद्धालुओं को सम्बोधित करते हुए हरिद्वार के महामण्डलेश्वर स्वामी विवेकानंद ने कहा कि श्रीमद्गभगवद गीता जीवन का ऐसा सारगर्भित शास्त्र है जो हमें जीवन के उच्चतम मूल्यों की प्रेरणा देती है। अयोध्या के योग गुरु डा चैतन्य ने महाभारत से अपना सम्बोधन शुरू करते हुए कहाकि गीता का दर्शन जीवन की प्रत्येक समस्याओं व शंकाओं अनिशिचतताओं का सम्यक समाधान है। सनातन धर्म में गीता की प्रासंगिकता विषय पर अपने उद्बोधन में राष्ट्रवादी विचारक जनार्दन सिंह ने हजारों वर्ष से सनातन धर्म पर किए जा रहे कुठाराघात को रेखांकित करते हुए कहा कि गीता धर्म ग्रंथों के मध्य ऐसा हीरा है जिसे विरक्त संत व गृहस्थ सभी को प्रिय है।

वाराणसी के योग गुरु व युवा विचारक महिम तिवारी व अमेरिका में सक्रिय प्रवासी संत विवेक शुक्ल द्वय ने विश्व भर में लोकप्रिय गीता के दर्शन को सुस्पष्ट करते श्रद्धालुओं का आह्वान करते हुए कहा कि गीता ज्ञान योग भक्ति योग व कर्म योग की त्रिवेणी है।कविवर ज्ञान प्रकाश मिश्र के संचालन में आयोजित गीता सम्मेलन के आयोजक इंजी. सुरेश दूबे ने कहा कि 23 वर्ष पूर्व 17 दिसम्बर 2000 को गीता गोष्ठी की स्थापना कुछ उत्साही युवाओं द्वारा श्रद्धालुओं को योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण के विराट स्वरूप से प्रेरणा देने के संकल्प के साथ किया गया था। उन्होंने कहा कि श्रीमद्भागवत गीता युद्ध के मैदान में मोहग्रस्त अर्जुन को उबारने के लिए कही गई थी। गीता का दर्शन जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है। इस मौके पर समाजसेवी व पूर्व विधायक तुलसीदास रायचंदानी, चेयरमेन प्रतिनिधि राजीव रस्तोगी, डा शैलेन्द्र नाथ मिश्र, डा जयकरन तिवारी, धीरेन्द्र पाण्डेय, अनिल सिंह चन्द्रभाल मिश्र, पंकज श्रीवास्तव, आर जे शुक्ल यदुराय, पंकज दूबे, कवि शिवाकान्त मिश्र विद्रोही, डा उमा सिंह, शिवमूर्ति मिश्र, राजेश मिश्र व श्रीकांत पाण्डेय मौजूद रहे।