- विक्रम संवत 809 में शुरू हुई थी परम्परा
बलरामपुर । 51 शक्तिपीठों में से एक देवीपाटन शक्तिपीठ में सदियों से चली आ रही परम्परा आज भी निभाई जा रही है। विक्रम संवत 809 मे शुरू हुई सिद्ध पीर बाबा रतननाथ की शोभा यात्रा प्रति वर्ष चैत्र नवरात्र के पंचमी के दिन शक्तिपीठ देवीपाटन पहुॅचती है। यह शोभा यात्रा बरसों से भारत नेपाल मैत्री का प्रतीक ही नही अपितु साम्प्रदायिक सदभाव की एक मिशाल भी है। इस वर्ष 26 मार्च को देवीपाटन मंदिर पहुंचे बाबा रतननाथ की शोभा यात्रा।
बाबा रतननाथ आठ प्रकार के सिद्धियों के स्वामी थे और उन्होने विश्व भ्रमण करते समय मक्का मदीना में जाकर मोहम्मद साहब को भी ज्ञान दिया था। मोहम्मद साहब बाबा रतननाथ से प्रभावित हुए और उन्होने बाबा रतननाथ को पीर की उपाधि देकर सम्मानित किया। तब से इन्हे सिद्ध पीर बाबा रतननाथ के नाम से जाना जाता है। नेपाल से पात्र देवता के साथ पैदल भारत आने में प्रतिनिधियों को नौ दिन का समय लगता है। सिद्ध पीर बाबा रतननाथ नेपाल राष्ट्र के दाॅग के राजा और गुरू गोरक्षनाथ के शिष्य और इन्होने ही शक्तिपीठ देवीपाटन का निर्माण कराया था। माॅ पाटेश्वरी की पूजा के लिए बाबा प्रतिदिन दाॅग से यहाॅ आया करते थे। मान्यताओं के अनुसार माता पाटेश्वरी के अनन्य भक्त बाबा रतननाथ सात सौ वर्षो तक जिन्दा रहे।
गुरूगोरक्षनाथ ने बाबा रतनाथ को एक अमृत पात्र दिया था। सात सौ वर्षो से ये अमृत कलश चैत्र नवरात्र की पंचमी तिथि को बाबा रतननाथ के प्रतिनिधि के रूप में नेपाल के दांग से देवीपाटन लाया जाता है। भारत-नेपाल की सीमा पर स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ देवीपाटन दोनो देशो की धार्मिक और आध्यात्मिक ही नही बल्कि सांस्कृतिक सम्बन्धो की प्रगाढता को भी प्रदर्शित करता है। चैत्र नवरात्र में नेपाल से आने वाली बाबा रतननाथ की ऐतिहासिक शोभायात्रा दोनो देशो के बीच पौराणिक काल से चली आ रही धर्मिक और आध्यात्मिक परम्पराओ का निर्वहन करती है। यह यात्रा भारत और नेपाल के सदियों पुराने सम्बन्धो को ही नही दर्शाती बल्कि सात समन्दर पार रहने वाले लोगो के लिये भी आकर्षण का केन्द्र है।
इस यात्रा को देखने और इसमें शामिल होने के लिये देश विदेश से लोग आते है।
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