श्री राम के जन्मोत्सव पर ब्रह्मर्षि वेदांती श्री राम कथा की अमृत मई बरसा की।

अयोध्या। परिक्रमा मार्ग स्थित हिंदूधाम भगवान श्री राम के जन्मोत्सव पर ब्रह्मर्षि वेदांती श्री राम कथा की अमृत मई बरसा की जा रही है वही वशिष्ठ पीठाधीश्वर महंत डॉ राघवेश दास वेदांती के संयोजन में देश के कोने-कोने से आए दर्जनों कवियों ने अपनी काव्य रस की वर्षा से सभी को सराबोर कर दिया। कब सम्मेलन की अध्यक्षता फिरोजाबाद से आए ओज के कवि प्रो ओमपाल सिंह ने कि और कहा कि सिर्फ रामलीला करने से ना चलेगा काम, राम का चरित्र भी तो जीवन में धरिए। रावण के पुतलों को मारने से क्या मिलेगा, भारत में बैठे हुए रावणों को मारिए। प्रोफेसर सिंह का मंदिर आंदोलन से भी बहुत पुराना नाता रहा है राम लला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे जैसे गीतों की रचना करके आंदोलन को धार दिया करते थे।

कवि सम्मेलन में अंबेडकर नगर से आई महिला कवित्री सुनीता पाठक ने रामलला का आंगन लिख दूं, या सरयू की तीर सुनाऊं जैसे गीत सुना कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया अंत में उन्होंने राजनीतिक पार्टियों टिप्पणी करते हुए जोगीरा सुनाया जिसको सुनकर श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए और पूरा परिसर तालियों से गुजरने लगा। गोंडा से आए शिवपूजन शुक्ल ने समाज पर उलाहना देते हुए गाया कि मंथरा गीत से होगी भलाई नहीं, कौशल्या जैसी है कोई माई नहीं, राम जैसा सुत विश्व भर में न हुआ, इस जगत में भरत जैसा भाई नहीं… गीत सुना करके सभी को भावविभोर कर दिया। वही वाराणसी बीएचयू से आए प्रोफेसर वशिष्ठ अनूप ने गजल सुना करके सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया उन्होंने कहा, हमेशा रंग बदलने की कलाकारी नहीं आती बदलते दौर कि मुझको अदाकारी नहीं आती, जिससे तहजीब कहते हैं ओ आते-आते आती है, फकत दौलत के बलबूते रवादारी नहीं आती। आगरा से राम की धरती पर पधारे प्रांजल प्रताप सिंह ने, कैसे मिले सुगंध सरोवर पंकज खिला नहीं, मजबूरी है उसे किरण का चुंबन मिला नहीं….. सुना करके सभी श्रोताओं को ताली बजाने के लिए मजबूर कर दिया। लखीमपुर से पधारे वीर रस के कवि कनक तिवारी ने धर्म प्राण शब्द नहीं, ध्वज है महानता का, धर्म ध्वज रक्षा हेतु खून दिया जाता है, आने वाली पीढ़ियों का रक्त तापयुक्त रहे, इसीलिए क्रांति का जुनून दिया जाता है ….जैसी कविता सुना कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया आयोजक राघवेश दास वेदांती ने कवियों का स्वागत किया संचालन अवध की धरती के सिरमौर कवि अशोक टाटम्बरी ने किया।