श्रीमद्भागवत कथा के द्वितीय दिवस में 151 आचार्य द्बारा श्री मदभगवत महापुराण का सस्वर वेद पाठ

अयोध्या प्रसिद्ध पीठ श्री अशर्फी भवन में चैत्र रामनवमी के अवसर पर सप्त दिवसीय अष्टोत्तर शत श्रीमद् भागवत कथा के द्वितीय दिवस में 151 आचार्य द्वारा श्रीमद्भागवत महापुराण का सस्वर पाठ वेद पाठ संत अभ्यागत सेवा के साथ-साथ व्यास पीठ पर विराजमान अनंत श्री विभूषित जगद्गुरु रामानुजाचार्य स्वामी श्री धराचार्य जी महाराज ने भागवत कथा का श्रवण कराते हुए परीक्षित महाराज के जन्म की कथा का श्रवण कराया शरणागत रक्षक हैं भगवान राजेंद्र परीक्षित प्रभु चरणों में शरणागति किए तो भगवान ने मां उत्तरा के गर्भ में परीक्षित की रक्षा की परीक्षित जी जैसे ही गर्भ से बाहर निकलते हैं परमपिता परमात्मा की छवि उनके नेत्रों से ओझल हो जाती है जिस दिव्य रूप का आनंद परीक्षित ने गर्भ में किया उस परमपिता परमात्मा को सामने ना देख कर के परीक्षित जी रुदन करने लगते हैं भगवान श्री कृष्ण सभी लोगों के देखते देखते स्वधाम को गमन कर जाते हैं भगवान श्री कृष्ण के जाते ही पृथ्वी पर घोर कलयुग व्याप्त हो जाता है राजेंद्र परीक्षित अपने पूर्वजों की भांति प्रजा का पालन करते हैं एक दिन परीक्षित जी नगर भ्रमण के लिए जाते हैं रास्ते में वृषभ को देखते हैं जिसके चारों पैर कटे हुए हैं और एक काला कलूटा पुरुष धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाए हुए समीप में खड़ा है वृषभ को रुदन करते हुए देख कर परीक्षित जी धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाते हैं कलयुग बड़ा ही बुद्धिमान है दौड़ करके परीक्षित के चरणों में लेट जाता है कलयुग के शरणागति करने पर परीक्षित जी कहते हैं कि काल रूपी भयावह दिखने वाले तुम कौन हो और इस वृषभ को क्यों मारना चाहते हो तुम मेरे राज्य को यथाशीघ्र छोड़कर के चले जाओ रुदन करता हुआ कलयुग परीक्षित जी से कहता है हे राजन् संसार में सभी और आपका राज्य व्याप्त हैं मैं कहां जाऊं राजा परीक्षित कहते हैं जो लोग प्रातः काल उठकर दंतधावन नहीं करते हैं सूर्य उदय के बाद तक सोते हैं ऐसी जगह पर जाकर तुम निवास करो जिस- घर में शुद्धता से प्रभु का भोजन नहीं बनाया जाता बर्तन झूठे पड़े रहते हैं ऐसी जगह जाकर तुम निवास करो कलयुग ने कहा हे राजन् यह दोनों जगह तो अत्यधिक निंदनीय है इसलिए एक कोई अच्छी जगह भी मेरे लिए बताइए परीक्षित ने कहा अन्याय से अर्जित स्वर्ण में भी मैं तुम्हें वास देता हूं ऐसा कह कर परीक्षित वन में आगे बढ़ें प्यास से व्याकुल होकर के शमीक ऋषि के आश्रम में प्रवेश किए शमीक ऋषि ध्यान में बैठे थे कली के प्रभाव के कारण याचना करने पर जल नहीं मिलने पर राजेंद्र परीक्षित क्रोधित हो गए मरा हुआ सर्प शमीक ऋषि के गले में डाल दिया शमीक ऋषि के पुत्र श्रंगी स्नान करने के लिए नदी पर गए हुए थे लौट कर जब आश्रम में आए पिता के गले में मरा हुआ सर्प देखकर अत्यधिक क्रोधित हो गए और श्राप दिया जिस व्यक्ति ने भी मेरे पिता श्री का यह अपमान किया है उस व्यक्ति के 7: दिन में तक्षक नाग के काटने से मृत्यु हो जाए परीक्षित जी ने जैसे ही राजभवन में प्रवेश किया मुकुट को उतार के रखा स्मरण आया कि आज मेरे से बड़ा घोर अपराध हो गया मैंने एक देव ऋषि का अपमान कर दिया है दुखित होकर रुदन करने लगे एक क्षण में अपने राज्य को छोड़ कर के अपराध से मुक्त होने के लिए ऋषि जनों के मध्य गए राजेंद्र परीक्षित के कल्याण हेतु सुखदेव जी महाराज सभा में उपस्थित होकर राजेंद्र परीक्षित को श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कराते हैं यह वही कथा है जिसका श्रवण करके राजेंद्र परीक्षित का उद्धार हुआ प्रभु भक्त वांछा कल्पद्रुम हैं अपने भक्तों की रक्षा के लिए प्रभु इस संसार में आते हैं 5 वर्ष के अबोध बालक ध्रुव मां सुरुचि से अपमानित होकर वन में गए देव ऋषि नारद से नवधा भक्ति का ज्ञान प्राप्त किया मंत्र दीक्षा ली और तपस्या की ध्रुव की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान भक्त ध्रुव को दर्शन देने पृथ्वी पर आते हैं भगवान श्री हरि का सामीप्य पाकर साधक संसार के सभी सुख प्राप्त कर लेता है भक्त ध्रुव के जैसी अविरल भक्ति यदि साधक के अंदर व्याप्त हो जाए तो इस घोर कलयुग में बी सतयुग का वास हो जाएगा कलयुग में मुक्ति पाने के लिए श्रीमद् भागवत कथा ही और भगवत भक्ति ही उत्तम साधन है सभी भक्तजन कथा का श्रवण कर के आनंदित हो रहे कथा का समय 3:00 बजे से शाम 7:00 तक है भागवत रसिक भक्तजन कथा में पधार कर अपने जीवन को धन्य करें