शिव समान मोहे प्रिय नही दूजा..!

बदलता स्वरूप ब्यूरो पंकज कुमार मिश्र जौनपुर
सावन के सावन बस हर हर महादेव और उसपर भी यह की सावन में करिए शिव की पूजा ,शिव समान मोहे प्रिय नही दूजा ! शिव एक शाश्वत उच्चारण है। शिव स्वयं में इतना विरोधाभासी शब्द है कि हर वर्ग और हर आयु के भक्तों का प्रिय है। शिव विरोध के बाद का उपजा ज्ञान है । शिवत्व में धर्म ही नही मजहब भी समाहित है । शिव के लिए काबा काशी कैलाशी अर्थात मनुष्य चाहे जिस धर्म का हो उसकी उत्पत्ति का मूल है शिव । श्रावण का महीना भगवान शिव जी की कृपा पाने के लिए बहुत खास माना गया है, वर्ष 2023 में श्रावण माह 4 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है, जिसका पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ेगा । श्रावण का महीना भगवान शिव जी की पूजा-अर्चना के लिए बेहद खास माना गया है, इस वर्ष श्रावण 2 माह का होगा अधिकमास/पुरषोत्तम माह होने की वजह से श्रावण का पवित्र महीना 4 जुलाई से 31 अगस्त तक चलने वाला है, इस बीच कुल 8 सोमवार पड़ेंगे सावन का पहला सोमवार 10 जुलाई को पड़ेगा, जबकि आखिरी सोमवार 28 अगस्त को पड़ेगा, वहीं सावन का समापन 31 अगस्त को होगा । शिव से बड़ा गृहस्थ कौन है! होने को तो ब्रह्मा, विष्णु, इंद्र का परिवार भी है पर इतना हरा-भरा परिवार किसका है? बाकियों की बस पत्नियां हैं, पर शिव की संततियां भी है। एक बेटी हैं अशोकसुन्दरी। देवताओं में सबसे पराक्रमी, देव सेनापति कार्तिकेय इन्हीं के ज्येष्ठ पुत्र हैं। विघ्न को दूर करने के लिए जिनके सम्मुख देव भी सिर झुकाते हैं, वे विघ्नहर्ता प्रथमपूज्य श्रीगणेश इनके कनिष्ठ पुत्र हैं। यह भी कितनी आह्लादित करने की बात है कि शिव पिता तो हैं, पर जनक नहीं। यह इतना निर्मोही और क्रोधी है कि अपने श्वसुर और अपने ही पुत्र का शीश उतार लेता है, पर इतना आसक्त प्रेमी है कि अपनी मृत पत्नी की देह को खुद से लगाये वर्षों तक विलाप करता है।

शिव से बड़ा सन्यासी कौन है! काशी के कोतवाल पालथी मारे बैठे हैं कैलाश पर। जाने क्या गुनते रहते हैं बैठे-बैठे। अलबेला रूप बनाया है। गले में सांप ही नहीं है, जटाओं में जुएं और शरीर पर पिस्सू भी पल रहे हैं। जैसे अपवित्रता और उष्णता कम पड़ गई हो, जो शमशान की अपवित्र भस्म भी मल रखी है शरीर पर। पर वही शीतलता के देव सोम इस शशिशेखर की जटाओं पर टिके हैं। और पवित्रता की महादेवी गंगा की यात्रा का प्रथम पड़ाव ही इस गंगाधर, इस कपर्दी के केश हैं। शिव से सुंदर कौन है! संसार की कौन सी कन्या है जो शिव से शिव जैसा वर पाने की कामना नहीं करती! शिव पुरुषत्व के प्रतीक हैं। इतने कि उनकी पूजा भी लिंग रूप में की जाती है। पर शिव केवल पुरुष रूप नहीं हैं, वे उतने ही स्त्री रूप भी है। वे अर्धनारीश्वर हैं। वे अर्धनारीश्वर होकर तृतीयलिंगियों के प्रतीक भी हैं। वे नर नारी के भेद से परे सम्पूर्ण मानव जाति के श्रेष्ठतम प्रतीक हैं। शिव से भोला कौन है! उसे नियमों से कोई सरोकार नहीं है। जिस प्रकार से हो सके, जैसी सामर्थ्य हो, जैसी इच्छा हो, वैसे पूजा कर लो। इसे कोई अंतर नहीं पड़ता, बस अंतर्मन का शिवप्रेम से आप्लावित होना पर्याप्त है। स्नान, ध्यान, नैवेद्य करो तो ठीक, न हो सके तो कोई बात नहीं। शुद्ध सात्विक भोग लगे तो ठीक, न हो तो चिलम के गांजे से भी उतना ही खुश है अपना भोला। शिव से दयालु कोई नहीं, इससे अधिक क्रोधी कोई नहीं। इससे बड़ा अनगढ़ कौन, और इससे बड़ा सुघड़ कौन। वर्षों तक निश्चल विराजमान यह नृत्य का स्वामी नटेश्वर है। शिव से बड़ा औघड़ कौन है, वह त्रिलोकेश है। वह भोला है, कृपानिधि है, रुद्र है। वह कृत्तिवासा पशुपतिनाथ है, देवाधिदेव है। वह वामदेव है, दक्षिणेश्वर है। वह वैष्णवों में सर्वश्रेष्ठ विष्णुवल्लभ है, वह रामेश्वर है। वह शिवाप्रिय कामारी है। वह सूक्ष्मतनु जगद्व्यापी है। वह अनघ अव्यय अव्यग्र अव्यक्त अनन्त है। सहस्त्रपाद सहस्त्राक्ष शंकर है, महाकाल है।