फसल व सब्जियों सहित मनुष्य के लिए भी घातक है गाजर घास

बदलता स्वरूप श्रावस्ती। जिलाधिकारी कृतिका शर्मा के निर्देश पर जिला कृषि अधिकारी अनिल प्रसाद मिश्रा ने बताया है कि गाजर घास के नियंत्रण एवं उन्मूलन संबंधी सुझाव एवं संस्तुतियों का व्यापक स्तर पर प्रचार प्रसार किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि गाजर घास (पार्थेनियम हिस्टेरोफोरस) को आमतौर पर कांग्रेस घास, सफेद टोपी घास, आषाढी गाजर घास, चटक चांदनी, आदि नामों से भी जाना जाता है जो एक विदेशी आक्रामक खरपतवार है। यह एक वर्षीय षाकीय पौधा है जिसकी लंबाई 1.5 से 2 मीटर तक होती है जो बीजों से फैलता है। वर्तमान समय में नमी के कारण फैलने वाली गाजर घास सिर्फ फसल एवं सब्जियों को ही नुकसान नहीं पहुंचती बल्कि मनुष्य की त्वचा के लिए भी अत्यधिक घातक है। यह फसलों को 33 प्रतिषत तक नुकसान पहुंचा सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार गेंदा के पौधे लगाकर गाजर घास के प्रभाव को कम किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि गाजर घास से खाद्यान्न फसलों, सब्जियां एवं उद्यान में प्रकोपों के साथ-साथ मनुष्यों की त्वचा संबंधी बीमारियां एग्जिमा, एलर्जी, बुखार एवं दमा जैसी बीमारियों का मुख्य कारण है। गाजर घास वर्ष भर फल फूल सकता है परंतु वर्षा ऋतु में इसका अधिक अंकुरण होने पर यह एक भीषण खरपतवार का रूप ले लेता है। वर्षा ऋतु में गाजर घास में फूल आने से पहले जड़ से उखाड़ कर कंपोस्ट एवं वर्मी कंपोस्ट बनाना चाहिए। वर्षा वाले क्षेत्रों में शीघ्र बढ़ने वाली फसलें लेनी चाहिए।

अक्टूबर-नवंबर माह में प्रतिस्पर्धात्मक पौधे जैसे चाकोड़ा के बीज एकत्र कर अकृषित क्षेत्रों में फरवरी-मार्च माह में छिडक़ देना चाहिए। घर के आस-पास बगीचे, उद्यान एवं संरक्षित क्षेत्र में गेंदे के पौधे उगाकर गाजर घास के फैलाव एवं वृद्धि को रोका जा सकता है। इसके रासायनिक नियंत्रण हेतु ग्लाइफोसेट से एक से डेढ़ प्रतिशत दवा अथवा मैट्रीब्यूजिन 0.3 से 0.5 प्रतिषत दवा का छिड़काव करना चाहिए। जैविक नियंत्रण हेतु मैक्सिकन बीटल जाइगोग्रामा बाइक्लोराटा नामक कीट को वर्षा ऋतु में गाजर घास के पौधे पर छोड़ना चाहिए। किसान भाई फसल से सम्बंधित किसी भी समस्या हेतु अविलम्ब सहभागी फसल निगरानी एवं निदान प्रणाली के मोबाइल नंबर 9452247111 एवं 9452247111 पर व्हाट्सएप पर कीट रोग के फोटो भेज कर नियंत्रण के संबंध में सलाह प्राप्त कर सकते हैं।