उदासीन संगत ऋषि आश्रम रानोपाली में श्रीचंद्र भगवान की 530 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई

महेन्द्र कुमार उपाध्याय

बदलता स्वरूप अयोध्या। रामनगरी की प्रसिद्ध पीठ उदासीन संगत ऋषि आश्रम रानाेपाली में श्रीचंद्र भगवान की 530वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई। जयंती महाेत्सव काे उदासीन आश्रम के वर्तमान पीठाधीश्वर श्रीमहंत भरत दास महाराज ने अपनी सानिध्यता प्रदान किया। उदासीन संप्रदाय के संस्थापक भगवान श्रीचंद्र का पूरा जीवन सनातन धर्म के प्रचार एवं प्रसार में समर्पित रहा। उनके द्वारा उदासीन आश्रमों का शिलान्यास करके सनातन धर्म को नई गति देने का प्रयास किया गया। अयोध्या में स्थापित संगत ऋषि उदासीन आश्रम जो कि सनातन धर्म की धरोहर हैं। यहां पर सनातन परंपरा को प्रफुल्लित, धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन, गुरुकुल प्रथा को जीवित रखने व समाज की सेवा के कार्य किए जा रहे है। गुरूवार को श्रीचंद्र भगवान के 530वीं जयंती महोत्सव के अवसर पर मठ में कई धार्मिक कार्यक्रम संपन्न हुए। सर्वप्रथम मंदिर में विराजमान भगवान का सुबह भाेग लगाकर पूजन-अर्चन व आरती किया गया। उसके बाद श्रीचंद्र भगवान का पूजन-अर्चन, आरती हुआ। तदुपरांत संताें एवं भक्तजनाें ने प्रसाद ग्रहण किया। इस अवसर पर उदासीन आश्रम के श्रीमहंत डॉ. स्वामी भरत दास महाराज ने बताया कि श्रीचंद्र भगवान का प्रकाशोत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। सबसे पहले आश्रम की परंपरा के अनुसार अभिषेक पूजन-अर्चन किया गया। उदासीनाचार्य भगवान श्रीचंद्र महाराज का जन्म प्रादुर्भाव भाद्रपद शुक्ल नवमी विक्रम संवत 1551 में माता सुलक्ष्णा के गर्भ से गुरुनानक के पुत्र के रूप में जन्म हुआ था।। श्रीचंद्र महाराज आत्मनिष्ठ, दृढ़ संकल्प, योग-साधाना व पारदर्शिता के धनी थे। भगवान श्रीचंद्र महाराज ने जन कल्याणार्थ अनेकाें रचनाएं की हैं। श्रीदास ने बताया कि अयोध्या में श्रीचंद्र भगवान की ही प्रेरणा से पूरा आश्रम पुष्पित, पल्लवित हो रहा है। उनका 530वां जयंती उत्सव मनाया गया, जिसमें अयाेध्याधाम के विशिष्ट संत-महंत, धर्माचार्य सम्मिलित हुए। जिन्होंने प्रसाद ग्रहण किया। उसके बाद संताें का स्वागत-सत्कार कर भेंट-विदाई दी गई। इस माैके पर रसिक पीठाधीश्वर श्रीमहंत जन्मेजय शरण, बड़ाभक्तमाल के महंत स्वामी अवधेश कुमार दास, दिगंबर अखाड़ा के उत्तराधिकारी रामलखन दास, स्वामी माधवानंद, रामकचेहरी के महंत शशिकांत दास समेत अन्य संत-महंत, धर्माचार्य और भक्तगण माैजूद रहे।