आनन्द प्रकाश गुप्ता
बदलता स्वरूप बहराइच। स्थानीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सभागार में बहराइच विकास मंच ने स्वतंत्रता सेनानी और क्रांतिकारी मदन लाल ढींगरा की पुण्यतिथि मनाई गई। इस अवसर पर संरक्षक अनिल त्रिपाठी ने कहा कि महज 24 साल की उम्र में फांसी के फंदे को चूमने वाले मदन लाल ढींगरा ने जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ बगावत शुरू की तो उनके परिवार ने ही उनका बहिष्कार कर दिया था, संबंध तोड़ लिये थे, यहां तक कि फांसी के बाद उनका शव लेने से भी इनकार कर दिया था। ढींगरा की 114वीं पुण्यतिथि पर अमृतसर के गोल बाग इलाके में उनके नाम पर एक स्मारक का उद्घाटन किया गया। अध्यक्ष हर्षित त्रिपाठी ने कहा कि 18 सितंबर 1883 को अमृतसर में जन्मे मदन लाल ढींगरा के पिता दित्तामल ढींगरा पेशे से डॉक्टर थे और अमृतसर में मेडिकल ऑफिसर थे। वह ब्रिटिश हुकूमत के वफादार माने जाते थे। साल 1904 में अमृतसर में स्कूली पढ़ाई खत्म करने के बाद मदनलाल ढींगरा को मास्टर्स की डिग्री हासिल करने के लिए लाहौर भेज दिया गया। यहीं वह स्वतंत्रता आंदोलन के संपर्क में आए और राष्ट्रप्रेम की भावना जगी। समाजसेवी रमेश मिश्रा ने कहा कि लाहौर में पढ़ाई के दौरान मदनलाल ढींगरा ने ब्रिटेन से मंगाए गए कपड़ों के खिलाफ बगावत कर दी। कॉलेज प्रबंधन ने उन पर माफी मांगने का दबाव डाला लेकिन माफी मांगने से साफ इनकार कर दिया। इसके बाद उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया। इस मौके पर राम दयाल सिंह, राजू सिंह, डा.देश राज गौड़, अभिषेक द्रिवेदी,अजय त्रिपाठी, शुभम मिश्रा आदि लोग मौजूद रहे।
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