आनन्द गुप्ता
बदलता स्वरूप बहराइच। डीजे और ध्वनि प्रदूषण को लेकर उच्च न्यायालय और सरकार द्वारा आदेश एवं गाइडलाइन भी है मगर उसका कड़ाई से पालन नहीं कराये जाने के कारण डीजे संचालकों की मनमानी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है और परेशान आम नागरिक हो रहा है।
धार्मिक भावना व धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अनुचित परंपराओं को उचित ठहराने की प्रवृत्ति के चलते ही समाज में विसंगतियों को बढ़ावा मिल रहा है। विसर्जन जुलूस के दौरान तेज आवाज वाले डीजे के अश्लील गाने पर नशे में मदमस्त युवाओं की भीड़ समाज के सामने बडी चनौती बन रही है।
आज के कोलाहल भरे माहौल में डीजे जैसे ध्वनि प्रदूषकों और अश्लीलता के खिलाफ खुद लामबंद होना चाहिए ताकि हर वर्ग इन उत्सवों का हिस्सा बन सकें और उनका जान-माल सलामत रहे। बिला शक कोई भी उत्सव बिना गीत और संगीत अधूरा है लिहाजा हर धार्मिक और सामाजिक उत्सवों में उन परंपरागत गीतों और वाद्ययंत्रों के संगीत को एक बार फिर से अपनाने की दरकार है जो आधुनिकता की भीड़ में गुम हो चुकी है आखिरकार सुकून भी उन्हीं में है। लेकिन इनसे होने वाले शोरगुल का असर आम नागरिकों पर ही देखा जा रहा है। बहरहाल डीजे सहित तमाम ध्वनि प्रदूषकों के उपयोग पर प्रभावी प्रतिबंध नहीं लग पाने की मुख्य वजह प्रशासन तंत्र पर राजनीतिक हस्तक्षेप या दबाव ही है। दरअसल आज देश की राजनीति धर्म और जाति पर केंद्रित हो चुकी है हर राजनीतिक दल इन मुद्दों को उभार देने में पीछे नहीं है।धार्मिक आयोजनों या विसर्जन जूलूसों के दौरान डीजे और धुमाल के बेजा उपयोग पर बंदिश में कोताही के लिए धार्मिक संवेदनशीलता जैसे कारण जिम्मेदार हैं। वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखें तो हमारे राजनीतिक और धार्मिक संगठन किसी भी धर्म के आयोजन में प्रशासनिक दखल को धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला बताते हुए मुद्दे को विस्फोटक बनाने से हिचक नहीं रहे हैं। भारी शोर वाले डीजे की पैरवी करने वालों को कौन समझाए
कि डीजे व नशे का डबल तड़क़ा हमारे धार्मिक आस्था पर लगातार चोट कर रही है लेकिन हमारे धर्मगुरु, धार्मिक संगठनों के अगुआ और प्रबुद्ध वर्ग ऐसी भक्ति को देखकर मौन रहने में ही अपनी भलाई समझ रहा है। हमारे सामने अनेक ऐसे धर्मों और पंथों के उदाहरण हैं जिसमें उनके धार्मिक आयोजनों के दौरान भारी शोरगुल वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों और शराब जैसे सभी नशीले पदार्थों का पूरी तरह से निषेध है। हर धर्म और जाति के लोगों को किसी दूसरे समुदाय के ऐसे अनुकरणीय फैसलों को जरूर स्वीकार किया जाना चाहिए ताकि धर्म और जाति में प्रगतिशीलता का भाव पैदा हो सके। बहरहाल देश के युवाओं का धर्म के प्रति आस्थावान होना राष्ट्र और समाज के लिए साकारात्मक संदेश है धार्मिक आयोजनों में युवाओं के बढ़-चढक़र हिस्सा लेने में भी कोई बुराई नहीं है अलबत्ता उन्हें ऐसे आयोजनों के दौरान नशा से दूर रहकर अपनी धार्मिक आस्था के प्रति सच्ची निष्ठा और देश प्रेम के साथ बन्धुत्व की भावना रखना चाहिए। सरकार द्वारा 55 डीबी तक ही साउंड और धुमाल को बजाने के निर्देश हैं जबकि डीजे संचालकों के कहना है कि 90 डीबी तो कार का हार्न बजट है। वैसे आम दिनों में रात 10 बजे से सुबह 6 बजे के बीच डीजे बजाना प्रतिबंधित है। डीजे बजाने के लिए तय मानक के मुताबिक, अन्य समय में डीजे कितना तेज बजेगा, यह भी तय किया गया है। डीजे बजाने से जुड़ी शिकायत मिलने पर, पुलिस कार्रवाई करती है। पुलिस डॉयल 112 और बीट पुलिस अधिकारियों के ज़रिए मैरिज हाल और लॉन में लोगों को जागरूक करती है। इसके अलावा, धार्मिक जुलूस में डीजे बजाने पर लाउडस्पीकर एक्ट के तहत कार्रवाई की जा सकती है। वर्तमान समय मे मनमानी और डीजे संचालकों की बढ़ती आपसी प्रतिस्पर्धा से उत्पन्न शोर अप्रिय और आपत्तिजनक स्तर पर होने के कारण प्राधिकरणों द्वारा डीजे के लिए ठोस रणनीति बनाये जाने की आवश्यकता है।