निजी स्कूलों की मनमानी नीति से निम्न व मध्यमवर्गीय अभिभावक लाचार

कर्ज लेकर बच्चों को शिक्षा दिला रहे हैं, प्रशासन को उठाना होगा सख्त कदम

बदलता स्वरूप ब्यूरो राजेश सिंह
गोंडा। निजी स्कूलों की मनमानी से अभिभावक परेशान हैं, शासन द्वारा निजी स्कूलों का फीस का निर्धारण न होने के कारण स्कूलों द्वारा मनमानी फीस वसूला जा रहा है, वहीं अभिभावक मनमाने रेट पर स्कूली किताब खरीदने को मजबूर है क्योंकि स्कूलों द्वारा निर्धारित दुकान पर ही किताबें मिलती हैं, जहां पर कोई भी छूट दुकानदार द्वारा नहीं दिया जाता है, बार-बार स्कूलों के ड्रेस का चेंज होना भी एक परेशानी का कारण है। परिवार में अगर दो या तीन बच्चों को निजी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण कराना हो, तो निम्न वर्ग एवं मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए शिक्षा बोझ बनता जा रहा है। यही नहीं कुछ अभिभावक कर्ज लेकर अपने बच्चों की शिक्षा निजी विद्यालय में दिला रहे हैं। कम कीमत की किताबों को स्कूलों की सांठ गांठ से ऊंची कीमत में छपवाकर पुस्तक विक्रेता वह स्कूलों के मालिकान मालामाल हो रहे हैं। एक सर्वे के दौरान कुछ पुस्तक विक्रेताओं ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि हम सब मजबूर हैं स्कूल प्रबंधन को किताबों पर 50 प्रतिशत व उससे अधिक का कमीशन देना पड़ता है और हमें मात्र 10 से 15 प्रतिशत पर ही संतोष करना पड़ता है। निजी स्कूल के संचालकों द्वारा अभिभावक ठगे जा रहे हैं। सवाल यह उठता है कि आखिर किसकी अनुमति से पुस्तकों पर छापी जा रही ऊंची कीमत। यदि जिला प्रशासन द्वारा विभागीय जांच हो जाए तो चौंकाने वाले नतीजे आ सकते हैं। बताना उचित होगा कि निजी स्कूलों की मनमानी के आगे गरीब एवं मध्यम वर्गीय परिवार के बच्चों के अभिभावक अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं क्योंकि इन स्कूलों के फीस और किताबों का बोझ तथा समय-समय पर स्कूलों द्वारा कराए जा रहे कार्यक्रमों का खर्च उठाने में असमर्थ हैं। विभागीय अधिकारियों की उदासीनता के कारण प्राइवेट स्कूलों द्वारा अभिभावकों के साथ नंगा खेल खेला जा रहा है इससे यही प्रतीत होता है या तो राजनीतिक दबाव में या व्यक्तिगत लाभ के कारण निजी स्कूलों पर शिक्षा विभाग के अधिकारी द्वारा कार्यवाही नहीं की जा रही है। अभिभावकों ने समाचार पत्र के माध्यम से जिलाधिकारी महोदया से अनुरोध किया है कि इस व्यवस्था पर सख्त कार्रवाई करते हुए हम लोगों को राहत दिलाने का कार्य करें।