महेन्द्र कुमार उपाध्याय
बदलता स्वरूप अयोध्या। श्रीमद्भागवत कथा द्वितीय दिवस की बेला में जगतगुरु रामानुजाचार्य डॉ स्वामी राघवाचार्य महाराज ने बताया कि श्रीमद् भागवत भगवान कृष्ण के साक्षात विग्रह के रूप में विराजमान हैं ब्रह्म सूत्र की सरस व्याख्या श्रीमद् भागवत है। ब्रह्म के जीव और माया दोनों विशेषण ऐसी व्याख्या जगतगुरु रामानुजाचार्य महाराज ने की। माधवाचार्य महाराज ने कहा जगत सत्य है झूठ नहीं है जगत को लोग झूठ कहते-कहते थक गए लेकिन जगत सत्य ही है। यह जीव जो है ब्रह्म से भी है ब्रह्मा के समान हो सकता है लेकिन वह जीव ब्रह्म से अलग है लेकिन ईश्वर के आधीन है। विभिन्न विद्वानों में वेदांत के अलग-अलग व्याख्या की लेकिन सभी ने कहा वेदांत की व्याख्या क्या है तो सभी ने कहा कि श्रीमद् भागवत वेदांत की व्याख्या है। जो सबको प्रेरणा दे उसको सविता कहते हैं उसे सबको प्रेरणा देने वाले भगवान कृष्ण है, सविता का मतलब भगवान कृष्ण और भगवान रघुनंदन है।कथा का विस्तार करते हुए श्री महाराज जी ने बताया कि भागवत भगवान का अक्षरावतार है। वक्ता श्रोता के धर्म को विवेचना करते हुए बताया कि वक्ता का चरित्र स्वच्छ होना चाहिए, वहीं श्रोता भगवान के प्रति समर्पित होना चाहिए। वक्ता प्रेरणा का पुंज होना चाहिए। उन्होंने कहा कि भगवान जीव का उद्धार करते हैं। उन्होंने कहा कि आप सब पर ठाकुर जी की कृपा है। जिसकी वजह से आप अवध धाम में कथा का आनंद ले रहे है। श्रीमद भगवत कथा का रसपान कर पा रहें हैं क्योंकि जिन्हें गोविन्द प्रदान करते है जितना प्रदान करते है उसे उतना ही मिलता है। कथा में यह भी बताया की अगर आप भागवत कथा सुनकर कुछ पाना चाहते हैं, कुछ सीखना चाहते है तो कथा में प्यासे बन कर आए, कुछ सीखने के उद्देश्य से, कुछ पाने के उद्देश्य से आएं, तो ये भागवत कथा जरूर आपको कुछ नहीं बल्कि बहुत कुछ देगी। कथा शुभारंभ के पहले पंडित शिवेश्वरपति त्रिपाठी, पंडित श्रीशपति त्रिपाठी और महापौर महंत गिरीशपति त्रिपाठी व्यास पीठ और व्यास पीठ पर विराजमान जगतगुरू स्वामी डॉ राघवाचार्य महाराज का पूजन अर्चन किया। कथा के विश्राम मेला पुनः आरती उतारी के और प्रसाद वितरण किया गया। आज की कथा में संघ के क्षेत्रीय प्रचारक अनिल जी सहित सैकड़ो की संख्या में कथा प्रेमी उपस्थित रहे। सभी अतिथियों का स्वागत रूद्रेश त्रिपाठी ने किया।